हैजा (Cholera) रोग के कारण, लक्षण और बचाव-Treatment Cholera

हैजा (Cholera) रोग के कारण, लक्षण और बचाव-Treatment Cholera

हैजा (Cholera) रोग के कारण, लक्षण और बचाव-Treatment Cholera

हैजा (Cholera)
हैजा एक तीव्र संक्रामक रोग है। यह संदूषित, जल, भोजन तथा दूध
द्वारा संचारित होता है, इसमेंतीव्र अतिसार (Acute
diarrhoea) एवं कै (Acute vomitting) की स्थिति होती
है। यह रोग विब्रियो कोलेरी (Vibrio cholerae) नामक जीवाणु से
फैलता है। यह जीवाणु संक्रमित व्यक्ति के मलमूत्र एवं कैमें विद्यमान रहता है। इस
जीवाणु का विकास दूषित जल, दूध एवं दूध के उत्पाद, सड़े गले फल
एवंसब्जियों, बासी भोजन तथा गंदी नालियों व अस्वच्छ वातावरण में अधिक
होता है।यह रोग स्त्री, पुरुष, बच्चे, गर्भवती एवं
दुग्धपान कराने वाली माता तथा सभी उम्र के व्यक्तियों मेंहोता है। गर्भवती माँ तथा
बच्चे जिनकी प्रतिरक्षात्मक क्षमता कम होती है वे शीघ्र ही इस रोग के शिकारहोते
हैं।
कारण
  1. संदूषित  भोजन, जल, दूध  एवं  दूध  के
    उत्पाद, , साग-सब्जियों के
    प्रयोग से यह बिमारी फैलती है।
  2. रोगी  व्यक्ति  के
    सम्पर्क में रहने, उसके साथ टहलने, खाने-पीने, सोने अथवा उसके
    कपड़े, बर्तन, कंघी, आदि वस्तुओं के उपयोग
    करने से यह रोग स्वस्थ व्यक्ति में फैलता है।
  3. मक्खियाँ  भी  रोगी
    के मलमूत्र में बैठकर इसके जीवाणु को अपने पेरों, पंखों तथा अन्य अंगों द्वारा लाती
है और बिना ढंके भोज्य पदार्थों पर बैठकर उसे दूषित कर देती
है। जब व्यक्ति ऐसे भोज्य पदार्थ का
सेवन करता है तो उसमें यह बिमारी फैल जाती है।
लक्षण
हैजा से ग्रसित व्यक्ति को दस्त के साथ-साथ कै होने लगती
है। दस्त अत्यंत पतले पानी जैसे होने लगते है जो देखने में ‘‘चावल के माँड’’ जैसे प्रतीत होते हैंे। शरीर से अत्यधिक मात्रा में पानी के साथ-साथ आवश्यक
लवण जैसे- सोडियम, पोटेशियम इत्यादि
का भी निष्कासन हो जाता है फलस्वरूप रोगी के हाथ-पैरों की माँसपेशियों में तीव्र ऐंठन
होने लगती है। रोगी को अत्यधिक प्यास लगती है और पेशाब आना कम हो जाता है। शुरू में रोगी को दिन
में 35-40 बार दस्त हो
जाती है।
रोगी के शरीर से पानी तरल दस्त एवं कै के रूप में बाहर
निकलता है। शरीर में निर्जलीकरण हो जाने से रक्त अम्लीय हो जाता है। फलतः रोगी की शीघ्र
ही मृत्यु हो जाती है। समय पर उपचार द्वारा व्यक्ति को मौत के मुँह
में जाने से रोका जा सकता है।
उद्भव काल ; (Incubation
period)
 –
इसका उद्भव काल ‘‘कुछ घंटों से 5 दिन’’ तक का होता है परन्तु सामान्यतः यह ‘‘1 से 2 दिनों’’ के मध्य होता है।
संक्रमण काल (Infective period)
जब तक रोगी पूर्ण रुप से स्वस्थ नहीं हो जाता है तथा जीवाणु
से मुक्त नहीं हो जाता तब तक इसका संक्रमण काल समाप्त नहीं होता।
प्रतिरक्षण (Immunization) –
रोग फैलने की स्थिति में (मृत विब्रियों कोलेरी से तैयार
किया गया) टीका लगाया जाता है। एक बार टीकाकरण होने से प्रतिरक्षण क्षमता ‘‘3 से 6 महीने’’ तक बनी रहती है।
बचाव
के उपाय
  1. संदूषित जल, दूध,
    फल, सब्जीइत्यादि का
    सेवन नहीं करना चाहिये।
  2.  प्रत्येक खाद्य पदार्थ को ढक कर रखना चाहिये
    ताकि उस पर मक्खी न बैठ पाये।
  3.  शुद्ध पेय जल एवं शुद्ध वातावरण की व्यवस्था
    करनी चाहिये।
  4.  महामारी की स्थिति मेंनीम्बू की शिकंजी, दही, छाछ इत्यादि का
    सेवन पर्याप्त मात्रा मंे करना चाहिये।
  5. हैजेसेग्रसित
    व्यक्ति को तुरंत अस्पताल पहुँचाना चाहिये।
  6. स्थानीयया
    महामारी फैलने पर प्रत्येक व्यक्ति को टीके लगवाने चाहिये।
  7. बाजारमेंउपलब्ध
    वस्तुएँ जैसे – मिठाई, नमकीन, तली भुनी चीजें, दूध व दूध से बने
    पकवान आदि
  8. कासेवननहीं
    करना चाहिये।
  9.  रोगी एवं उसके द्वारा उपयोग में ली जाने वाली
    वस्तुओं को अलग रखना चाहिये।
  10. रोगीकेवस्त्र, बर्तनतथाअन्य
    उपयोग में ली वस्तुओं को फिनाइल, ब्लीचिंग पाउडर, डिटोल इत्यादि विसंक्रामक (Disinfectant)
  11. पदार्थसेधोना
    चाहिये।
उपचार
  1. रोगी  का  समय  पर  इलाज  कर  के  मौत  के  मुँह  से  बचाया  जा  सकता  है।
  2. चिकित्सक  के  परामर्श  के  अनुसार  रोगी  को  उचित  दवाइयाँ  देनी
    चाहिये तथा साथ ही उनके सुझाये
अनुसार उचित खाद्य सामग्री देनी चाहिये।
  1. रोगी  व्यक्तिकोओ.आर.एस. का  घोल  मुँह  के  द्वाराबार-बार
    देना चाहिये।

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