मालकांगनी / Celastrus Paniculatus in Hindi
मालकांगनी एक पहाड़ी लता है जो प्रायः सम्पूर्ण भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में देखने को मिल जाता है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में मालकांगनी का प्रयोग बुद्धि को बढ़ाने, अवसाद में, सर्दि-जुकाम, गठिया रोग में, त्वचा सम्बधि विकार, कफ और नशा त्याग में सहायक होती है। मालकांगनी पिले फुलों वाली एक अरोहिणी विस्तृत लता है। जिसकी शाखायें झुकी हुई होती हैं जिन पर सफेद रंग के बिन्दू होतें हैं।
मालकांगनी/ज्योतिष्मती के पते आम के पतों की आकृति के 2.5 से 5 इंच लम्बे और 1.25 से 2.50 इंच तक चैड़े होते हैं। ये पते अंडाकार और आगे से नुकिले होते हैं जो मध्यम प्रकार के सख्त होते हैं। इसके फुल ग्रीष्म ऋतु में आते हैं जो पीले और कुच्छ हरित वर्ण के होते हैं। ये गुच्छों में लगे रहतें हैं और इनका पुष्पदंड 3-4 अंगुल लम्बा होता है। अक्टुबर से जनवरी महीने में ज्योतिष्मती के फल पकते हैं। ये मटर के समान गोल, पीले और तीन खंडो में बंटे रहते हैं। फल के प्रत्येक खंड में एक या दो बीज निकलते हैं जो केशरी रंग के एक आवरण से ढ़के रहते हैं।
मालकांगनी का रासायनिक संगठन
इसके बीजों में 52.2 प्रतिशत गाढ़ा और कड़वा तेल , एक रालयुक्त तत्व और कुच्छ मात्रा में एक कषाय द्रव होता है। मालकांगनी के बीजों से तेल दो रंग का होता है – पीलेरंग का और दूसरा काले रंग का। यह रंग इनका तेल निकालने की विधि और उसमें मिलाया जाने वाले अन्य सहायक द्रवों के कारण होता है।
मालकांगनी के गुण
मालकांगनी/ज्योतिष्मती अत्यंत तिक्ष्ण और मेध्य होती है। इसका रस तीक्ष्ण होतो है और गुणों मे यह कटु और तिक्त होती है। ज्योतिष्मती का वीर्य उष्ण होता है और पाचन के बाद इसका विपाक भी कटु ही होता है। यह स्निग्ध और उष्ण वीर्य होने के कारण वात और कफ का शमन करती हैं।
प्रयोज्य अंग – बीज और तेल ।
मात्रा – बीज 1 से 2 ग्राम तक एवं तैल 5 से 15 बूंद तक प्रयोग किया जा सकता है।
विभिन्न भाषाओं मे पर्याय
संस्कृत – ज्योतिष्मती , पारावतपदी, काकाण्डकी, कुगुणिका, पीततैला, कटवीका, वेगा
हिन्दी – मालकांगनी,
मराठी – मालकांगोणी
गुजराती – मालकांगणी
मलयाली – पालुरूवम्
अंग्रेजी – Climbing Staff plan
लेटिन – Celastrus Paniculatus
हिन्दी – मालकांगनी,
मराठी – मालकांगोणी
गुजराती – मालकांगणी
मलयाली – पालुरूवम्
अंग्रेजी – Climbing Staff plan
लेटिन – Celastrus Paniculatus
मालकांगनी के स्वास्थ्य लाभ एवं प्रयोग
मालकांगनी का प्रयोग बहुत सी व्याधियों में कर सकते है। इसका प्रयोग आपकी स्मरण शक्ति को बढाता है इसी लिए इसे ज्योतिष्मति भी कहते हैं। यह कफज रोगों और वात जनित रोगों में भी अपना अच्छा असर दिखाती है। त्वचा के विकार, अफिम का नशा छुड़ाना हो, शारीरिक कमजोरी और महिलाओं में होने वाली अनियमित महावारी में भी अच्छे परिणाम देती है।
अफिम का नशा छुड़ाने के लिए ऐसे करें प्रयोग
मालकांगनी के पते अफिम की लत छुड़ाने में कारगर सिद्ध होते हैं। अफिम के आदि व्यक्ति को ज्योतिष्मती के पतों का एक चम्मच रस निकाल कर दो चम्मच पानी के साथ दिन में दो या तीन बार देने से अफिम की गंदी लत छुट जाती है।
दमा रोग में मालकांगनी के फायदे
दमा रोग में ज्योतिष्मती के बीजों को समान मात्रा में छोटी इलायची के दानों के साथ पीसकर चूर्ण बनालें। अब इस चुर्ण का आधा चम्मच की मात्रा में दिन में दो बार शहद के साथ प्रयोग करने से दमे का रोग ठीक हो जाता है।
अवसाद में
मालकांगनी के बीजों का चुर्ण ब्राहमी चूर्ण के साथ बराबर की मात्रा में मिलाकर सेवन करने से अवसाद और याद्दास्त जैसी बिमारी में लाभ मिलता है। अन्य प्रयोग के रूप में आप इसके साथ शंख पुष्पी का भी प्रयोग कर सकते है।
गठिया रोग
- मालकांगनी , कालाजीरा, अजवाइन, मेथी और काले तील – इन सभी को समान मात्रा में लेकर कुट पीस कर दरदरा बना लें।इसे एरण्ड तेल में गर्म करके इस तेल को छान लें।इस तेल का प्रयोग स्थानिक करें।जोड़ो के दर्द और सूजन में आराम मिलेगा।
- ज्योतिष्मती एक भाग और अजवाइन आधा भाग दोनों को मिलाकर चूर्ण बना ले।इस चुर्ण को सुबह-शाम खाने से जल्द ही गठिया रोग में आराम मिलता है।
मिर्गी
मिर्गी रोग में ज्योतिष्मती के साथ थोड़ी मात्रा में कस्तुरी मिलाकर प्रयोग करने से मिर्गी से छुटाकारा मिलता है।
शारीरिक कमजोरी
- मालकांगनी के तेल की 4 बूंदे दूध या मक्खन के साथ इस्तेमाल करने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है और दिमाग भी तेज होता है।इसके बीजों को गाय के शुद्ध घी में भून कर समान मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करने से भी कमजोरी दूर होती है।इन प्रयोगों के साथ आप अश्वगंधा और शतावरी का इस्तेमाल भी कर सकतें है।
- दूसरे प्रयोग के रूप में आप ज्योतिष्मती के बीजों को 100 ग्राम की मात्रा में गाय के घी में भूनकर 100 ग्राम देशी खांड मिलाकर सेवन करने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है।
नंपूसकता
नंपुसकता में ज्योतिष्मती तेल की 10 बुंदे नागबेल के पान पर लगाकर खाने से नपुंसकता दूर हो जाता है। इसके तेल को पान के पतों पर लगाकर रात्री में अपने लिंग पर बांध कर सो जावे। यह प्रयोग भी शीघ्रपतन और नपुंसकता से निजात दिलाता है। मर्दाना कमजोरी को दूर करने के लिए आप खीर में इसके बीजों को मिलाकर खाने से ताकत मिलती है।
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