Elephantiasis Causes Symptoms And Treatment (फाइलेरिया)

Elephantiasis Causes Symptoms And Treatment (फाइलेरिया)

Elephantiasis Causes Symptoms And Treatment  (फाइलेरिया)

हाथीपांव: पैरों को हाथी जैसा सूजा देता है ये रोग, जानिए इसके कारण, लक्षण, बचाव और उपचार

यह रोग उन स्थानों के निवासियों में ज्यादातर होता है, जिन स्थानों में जल का प्रभाव ज्यादा हो, जहां वर्षा ज्यादा समय तक ज्यादा मात्रा में होती हो, शीतलता ज्यादा रहती हो, जहां के जलाशय गंदे हों। 
लिम्फैटिक फिलारयासिस (Lymphatic Filariasis) या एलिफन्टाइसिस (Elephantiasis) को फाइलेरिया कहा जाता है। इस बीमारी को आम भाषा में श्लीपद, फीलपांव या हाथीपांव के नाम से भी जाना जाता है। यह रोग संक्रमित मादा मच्छर के काटने से होता है। इस रोग के प्रभाव से एक या दोनों पैर हाथी के पैर जैसे मोटे हो जाते हैं, यही वजह है कि इसे हाथीपांव रोग भी कहा जाता है। यह रोग उन स्थानों के निवासियों में ज्यादा होता है, जिन स्थानों में जल का प्रभाव ज्यादा हो, जहां वर्षा ज्यादा समय तक ज्यादा मात्रा में होती हो, शीतलता ज्यादा रहती हो, जहां के जलाशय गंदे हों।

फाइलेरिया क्यों होता है?

इस रोग को पैदा करने में फाइलेरिया बोनक्राफ्टी नामक एक कीटाणु कारण होता है अतः इस रोग को फाइलेरिया भी कहते हैं। इसके अलावा यह क्यूलेक्स मच्छर द्वारा फैलाई जाने वाली बीमारी है। यह परजीवी धागे की तरह होता है और इसका संक्रमण लसिका (लिम्फ) ग्रंथियों में होता है। यह लसीका में ही मर जाते हैं और लसीका मार्ग बंद कर देते हैं, जिससे लसीका अपना काम बंद कर देती है। यह रोग मुख्यतः बिहार, बंगाल, पूर्वी प्रान्तों, केरल और मलाबार प्रदेशों में ज्यादातर होता पाया गया है। अधिकतर मामलों में इस रोग के लक्षणों का प्रारंभिक अवस्था में पता नहीं चल पाता है, जिससे इलाज में मुश्किल हो सकती है।

यह संक्रमण किस प्रकार फैलता है

वयस्क मादा व नर कृमि मनुष्य की लिम्फ ग्रंथियों में रहते हैं एवं इनके मिलन पर मादा कृमि असंख्य सूक्ष्म फाइलेरिया भ्रूणों (माइक्रोफाइलेरिया) को जन्म देती है। इनके विकसित होने में एक से ढेड़ वर्ष का समय लगता है। संक्रमित व्यक्ति को मच्छर द्वारा काटे जाने पर माइक्रोफाइलेरिया मच्छर के शरीर में चले जाते हैं एवं विकास करते है। ऐसा मच्छर जब अन्य स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तब सूक्ष्म भ्रूणों का स्वस्थ मनुष्य के शरीर में प्रवेश होता है। इस प्रकार बीमारी का फैलाव होता रहता है।

फाइलेरिया से जुड़े तथ्य

- WHO के अनुसार, दुनियाभर में 52 देशों में 856 मिलियन लोग इस रोग से पीड़ित हैं और इस परजीवी संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए कीमोथेरेपी की आवश्यकता होती है।
- साल 2000 में इस रोग से 120 मिलियन से अधिक लोग संक्रमित हुए। 2000 से इस संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए 6.7 अरब से अधिक उपचार दिए गए हैं।
- भारत में 20 राज्यों के 250 से अधिक जिलों में 650 मिलियन लोग इस रोग से पीड़ित होने का अनुमान है।
- भारत में इस रोग के होने की 99. 4 फीसदी वजह फाइलेरिया बोनक्राफ्टी है।

फाइलेरिया के लक्षण

- इस रोग में तरल पदार्थ के संचय के कारण हाथ और पैरों में सूजन आ जाती है। हाथ या पैर सूजकर अपने सामान्य आकार से ज्यादा मोटे हो जाते हैं।
- महिलाओं के स्तनों में सूजन आने लगती है। इससे जांघों में फोड़े और स्तन ज्यादा बड़े होने लगते हैं।
- इससे लिम्फ नोड्स और ब्रेस्ट में ब्लड फ्लो कम होने के कारण लिम्फ नोड्स में भी वृद्धि और लिम्फेडोनोपैथी की समस्या हो सकती है।
- रोगी के अंडकोश मोटे होने लगते हैं। लिंग के नीचे की स्किन में खिंचाव होने से दर्द और जलन होने लगती है।
- अधिकतर मामलों में प्रभावित हिस्से की त्वचा ज्यादा शुष्क और मोटी हो जाती है। उचित रक्त प्रवाह के कारण प्रभावित हिस्से पर कई बार फोड़े, धब्बे और त्वचा काली भी हो जाती है।
- इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को बेचैनी होना आम बात है। इतना ही नहीं जैसे-जैसे यह रोग बढ़ता रहता है रोगी को बुखार और ठंड लगना भी शुरू हो जाता है।

फाइलेरिया का उपचार

डायथाइल्कार्बामाजीन (डीईसी) फाइलेरिया के उपचार की अनुशंसित दवा हैं। यह माईक्रोफिलेरिया को मारता हैं, पर व्यस्क कीड़े पर इसका कोई प्रभाव नहीं होता। इस प्रकार यह केवल एक व्यक्ति से दूसरे में संक्रमण फैलने से रोककर संक्रमण को नियंत्रित करने में मदद करता हैं। इससे कुछ व्यक्तियों में प्रतिक्रिया हो सकती हैं। कुछ रोगियों में इवरमैक्टिन या एल्बेन्डजोल भी उपयोगी हो सकते हैं।

फाइलेरिया रोग से ऐसे करें बचाव

- मच्छरों से अपना बचाव करें
- मच्छरों से बचने के लिए क्रीम और अन्य चीजों का इस्तेमाल करें
- पीड़ित व्यक्ति से सावधान रहें और उसका पूरा इलाज कराएं
- माइक्रोफ्लेरिया रात के समय खून में जारी होता है इसलिए सतर्क रहें
- जरूरत पड़ने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लें

इस बात का रखें ध्यान

रोगग्रस्त हिस्से की अच्छी साफ सफाई और स्वच्छता बनाए रखकर लिम्फेडीमा और त्वचा में द्वितीयक बैक्टीरिया संक्रमण के बिगड़ने से बचा जा सकता हैं। प्रभावित अंग को ऊंचा उठाकर रखा जाना चाहिए और लिम्फ प्रवाह को बेहतर बनाने के लिए नियमित व्यायाम किया जाना चाहिए।

Post a Comment

0 Comments